अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित
एजेंसी|नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने अदालती कार्यवाही का लाइव प्रसारण करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर शुक्रवार को सुनवाई पूरी करते हुए इस पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा कि लाइव प्रसारण का उनका मकसद खुली अदालत को बढ़ावा देना है। इससे कोर्ट में भीड़ को भी कम किया जा सकता है। लाइव प्रसारण कानूनी शिक्षा के उद्देश्यों के लिए भी मददगार हो सकता है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल इसकी शुरुआत चीफ जस्टिस की कोर्ट से करने को कहा। सुनवाई के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट में मौजूद एक वकील ने लाइव प्रसारण के सुझाव का विरोध किया। उन्होंने कहा कि इसका न्यायिक प्रशासन पर असर पड़ेगा और इससे फेक न्यूज को बढ़ावा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने पहले अदालती कार्यवाही के लाइव प्रसारण को वक्त की जरूरत बताया था।
900 अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंस सुविधा शुरू, जेल इस मामले में पीछे :
देशभर के जेलों में बंद आपराधिक मामलों के आरोपियों के मुकदमों की सुनवाई में तेजी लाने के लिए 900 से अधिक अदालतों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू हो चुकी है। वहीं इस सुविधा को शुरू करने में जेल पीछे रह गए हैं। केंद्रीय कानून मंत्रालय के आंकड़ों में यह सामने आया है। संसद में ई-कोर्ट्स के मुद्दे पर चर्चा के लिए मंत्रालय की ओर से जुटाए गए डेटा के अनुसार देश के 24 हाईकोर्टों के अधीन आने वाली 929 जिला अदालतों को वीडियाे कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा से लैस किया जा चुका है। लेकिन 342 जेलों में ही यह सुविधा शुरू हो पाई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के तहत आने वाले सिर्फ 56 और पटना हाईकोर्ट के अधीन 43 अदालतों में ही वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू हुई है, जबकि इन दोनों ही हाईकोर्टों के अधीन आने वाली एक भी जेल में यह सुविधा शुरू नहीं हो सकी है। ई-कोर्ट मिशन मॉड प्रोजेक्ट के दूसरे चरण में देशभर में 2500 अदालतों और 800 जेलों में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधा शुरू किया जाना है।