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बीते हफ्ते मध्यप्रदेश में दुष्कर्म के दो बड़े मामलों में अहम फैसले आए। एक फैसला मंदसौर की घटना का, जो देशभर में सुर्खियों में रही थी। वहीं दूसरा फैसला उज्जैन की घटना का था। मंदसौर के दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई। रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में भी इस फैसले की तारीफ की। जबकि उज्जैन के केस में तो रिकॉर्ड 6 घंटे के भीतर फैसला आ गया। ये फैसले करने वाली दोनों जजों के बीच तमाम समानताएं हैं। मंदसौर की जज निशा गुप्ता और उज्जैन की जज तृप्ति पांडे के परिवार एक ही जिले के हैं। दोनों मप्र के ही शिवपुरी जिले की कोलारस तहसील से हैं। दोनों की पढ़ाई भी एक ही शहर में हुई। दोनों के पति भी जज हैं। दोनों के लिए ये इस तरह के पहले फैसले थे।
जज तृप्ति पांडे और निशा गुप्ता ने पिछले हफ्ते ही दुष्कर्म के मामलों में फैसले सुनाए हैं…
निशा गुप्ता, मंदसौर;पहला फैसला, जिसमें फांसी दी गई
मामला: 2 युवकों ने 7 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया था।
 यह हैवानियत की हदें पार करने वाला केस है। वो भी इतनी छोटी बच्ची के साथ, जो विरोध भी नहीं कर सकती। फांसी से कम कोई भी सजा दी होती तो यह न्याय नहीं होता। (फैसले में टिप्पणी)
अपने जिले से न्यायाधीश बनने वाली पहली लड़की थीं निशा गुप्ता
न्यायाधीश निशा गुप्ता की पढ़ाई शिवपुरी में हुई। लॉ की डिग्री लेने के बाद उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए किया। 2003 बैच की निशा शिवपुरी से जज बनने वाली पहली लड़की थीं। डेढ़ साल पहले ही मंदसौर में पोस्टेड हुई हैं। 26 जून को मंदसौर में 7 साल की बच्ची से दुष्कर्म और उसे मृत समझकर लावारिस छोड़ने का मामला आया। पूरे देश की सुर्खियों में रहे इस जघन्य अपराध की 20 जुलाई से सुनवाई शुरू हुई। करीब 12 सुनवाई के बाद निशा गुप्ता ने 21 अगस्त को दोनों को फांसी की सजा सुनाई। ये इस तरह की देश में पहली सजा रही। उनके पिता डॉ. आरआर गोयल कहते हैं- जब निशा जज बनी, तो मैंने यही कहा था कि किसी निर्दोष को सजा न हो और गुनहगार बचने न पाए। कभी मैं भी कटघरे में रहूं तो बिना किसी दबाव या प्रभाव में आए फैसला देना। किसी का लिहाज मत करना। आज उसके इस फैसले ने हमारा सिर ऊंचा कर दिया है।
तृप्ति पांडे, उज्जैन; सिर्फ 6 घंटे में सुना दिया फैसला
मामला:14 साल के किशोर ने 4 साल की बच्ची से दुष्कर्म किया था।
बच्चे पर परिवार का नियंत्रण नहीं है। अश्लील फिल्मों ने भी उस पर गलत असर डाला। यह केस मानसिक विकृति का नतीजा है। उसे 2 साल के लिए सुधार गृह में भेजा है। (फैसले में टिप्पणी)
तृप्ति के दादा वकील और पिता जज; सीख- इंसाफ में देरी भी नाइंसाफी है
तृप्ति पांडे के दादा बाबूलाल पांडे वकील रहे हैं। पिता एके पांडे भी सीबीआई के स्पेशल जज रहे। तृप्ति भी 2008 बैच में चुनी गईं। भोपाल, इंदौर, शहडोल, भिंड के बाद उज्जैन आईं। यहां उनके सामने महज 4 साल की बच्ची से दुष्कर्म का केस आया। आरोपी भी 14 साल का था। न्यायाधीश तृप्ति पांडे ने चालान पेश होने के 6 घंटे के भीतर फैसला सुना दिया। इसमें भी बच्ची का बयान लेने में काफी समय गया। वह काफी डरी हुई थी। उसे अलग कमरे में ले जाया गया। माता-पिता की मौजूदगी में घर जैसा माहौल बनाकर उससे सवाल-जवाब किए गए। बच्ची से टुकड़ों-टुकड़ों में पूरी बात पता चल सकी। डीएनए टेस्ट की रिपोर्ट थी ही। नाबालिग आरोपी को 2 साल के लिए सुधारगृह भेजने का आदेश दिया गया। तृप्ति के पिता एके पांडे कहते हैं-ऐसे मामलों में कार्रवाई इसी रफ्तार से होनी चाहिए। क्योंकि इंसाफ में देरी भी एक तरह से नाइंसाफी ही होती है।
पीएम मोदी ने मन की बात में भी इन फैसलों की तारीफ की.. |