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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिनभर सुनी दलीलें, अगली सुनवाई 29 को 

प्रवेश के स्तर पर आरक्षण में कोई दिक्कत नहीं: संविधान पीठ एससी-एसटी के समृद्ध लोगों के परिजनों को पिछड़ा मानना कितना उचित: सुप्रीम कोर्ट
एजेंसी|नई दिल्ली
उच्च पदों पर बैठे एससी-एसटी के समृद्ध लोगों के परिजनों को नौकरियों में प्रमोशन में कोटा देने की दलीलों पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने पूछा, alt147आरक्षण की बदौलत मि. एक्स किसी राज्य के मुख्य सचिव बन गए। अब क्या उनके परिजनों को इतना पिछड़ा मानना उचित होगा कि उन्हें प्रमोशन में कोटा दें।
राजनीतिक दल एससी, एसटी वर्गों को समझते हैं वोट बैंक: शांति भूषणसीनियर एडवोकेट शांति भूषण ने कहा- जब आप क्लास-1 अधिकारी बन जाते हैं तो पिछड़े वर्ग में नहीं रहते। राजनीतिक दल तो एससी और एसटी वर्गों को वोट बैंक समझते हैं। यह समानता और नौकरियों में बराबर अवसरों के अधिकार का उल्लंघन है।

पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के तीखे सवाल

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को तरक्की में आरक्षण दिए जाने की बहस में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने पैरवी करने वाले वकीलों से तीखे सवाल पूछकर समाज में चल रही चर्चा को स्वर देने का प्रयास किया है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के नेतृत्व में पांच सदस्यों की संविधान पीठ में चल रही सुनवाई में पदोन्नति में आरक्षण की पैरवी करने वाले केके वेणुगोपाल, तुषार मेहता, इंदिरा जय सिंह, दिनेश द्विवेदी और पीएस पटवालिया जैसे दिग्गज वकीलों से अदालत ने पूछा है कि क्या आरक्षण अनंत काल तक चलना चाहिए और क्या एक आईएएस अधिकारी के पड़पोते को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।

उनका प्रश्न यह भी है कि नौकरी में प्रवेश के वक्त तो आरक्षण ठीक है लेकिन, तरक्की में आरक्षण देने का क्या मतलब है। यह ऐसा मसला है जिस पर लंबे समय से विवाद चल रहा है। 2006 में सुप्रीम कोर्ट के ही फैसले में कहा गया था कि समाज के इस समुदाय का सरकारी पदों पर प्रतिनिधित्व अपर्याप्त है इस बारे में सरकार को पूरी तरह छानबीन करके आंकड़े उपलब्ध कराना चाहिए। इस बीच कई उच्च न्यायालयों के फैसले भी तरक्की में आरक्षण के विरुद्ध आने के कारण सरकार निर्णय ले पाने में असमर्थ थी।

उत्तर प्रदेश में अगर बसपा की सरकार इसके पक्ष में थी तो समाजवादी पार्टी की सरकार इसके विरुद्ध थी। अदालत में यह दलील भी आई कि 1992 के इंदिरा साहनी फैसले की तरह क्यों न अन्य पिछड़ा वर्ग की तरह एससी और एसटी के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा लागू कर दी जाए।

इस बहस में संविधान के अनुच्छेद 16 में वर्णित समानता के अधिकार और दूसरे संबंधित प्रावधानों की भी चर्चाएं हो रही हैं। भारत इस समय जातिगत और सांस्कृतिक समानता के सवाल पर बेहद नाजुक दौर से गुजर रहा है। दलित और पिछड़े तबकों की शिकायतें भी उग्र रूप ले रही हैं। उधर, सवर्ण समाज को लगता है कि वोट बैंक की राजनीति आरक्षण को कभी खत्म नहीं होने देगी।

आरक्षण सकारात्मक भेदभाव के सिद्धांत के तहत लाया गया ऐसा कार्यक्रम है जो अगर आरंभ में देश को जोड़ने का काम कर रहा था और बाद में विभाजित करने की भूमिका निभा रहा है। इसलिए इसे न्याय से जोड़ना होगा और पदोन्नति में आरक्षण को लागू करने लिए सिर्फ भावनात्मक तर्क ही नहीं सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन और प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े भी देखे जाएं। 

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