नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘जब कोई न्यायाधीश किसी मामले की सुनवाई से खुद को अलग करता है तो किसी भी वादी-प्रतिवादी या तीसरे पक्ष को इसके कारणों के बारे में जानने या सवाल करने का कोई अधिकार नहीं है।’
न्यायालय ने कहा है कि किसी न्यायाधीश के सुनवाई से खुद को अलग करने का सम्मान किया जाना चाहिए, भले ही इसकी वजह के बारे में विस्तार या संक्षिप्त में खुलासा किया गया हो या नहीं।
जस्टिस आशा मेनन ने कहा कि न्यायाधीश पर इस तरह के कारणों को सार्वजनिक करने के लिए दवाब नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यदि एक न्यायाधीश सुनवाई से अलग होने के कारणों का खुलासा करने से इनकार करता है और एक शिकायत के जरिए इसकी जांच की मांग की जाती है तो न्यायाधीश के लिए मुश्किल स्थिति होगी। न्यायालय ने कहा है कि एक न्यायाधीश द्वारा मामले की सुनवाई से अलग होने के कारणों के बारे में खासकर एक वादी की तरफ से जानकारी मांगना या जांच की मांग करना, न्याय देने की प्रक्रिया में हस्तक्षेप होगा। न्यायालय ने कहा है कि मामले की सुनवाई से अलग होने के कारणों का खुलासा करना है या नहीं, यह संबंधित न्यायाधीश के विवेक पर निर्भर करता है। उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी 16 जुलाई 2020 को पारित विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए की है। याचिका में, मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को एक मामले की सुनवाई में अज्ञात व्यक्ति द्वारा दवाब बनाने का मुकदमा दर्ज करने की मांग की गई थी। अज्ञात व्यक्ति द्वारा मामले की सुनवाई प्रभावित करने को लेकर दवाब बनाने के बाद संबंधित मजिस्ट्रेट ने सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इस मामले में न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माने की रकम दिल्ली उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति में एक सप्ताह के भीतर जमा कराने को कहा है।
● कारण सार्वजनिक करने के लिए दबाव नहीं बनाया जा सकता
● उच्च न्यायालय ने चुनौती देने वाली याचिका को खारिज किया