Appointment in Judiciary: MOP

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न्यायाधीशों की नियुक्ति में एमओपी बनने की संभावनाएं नहीं

जज की कमी के कारण वर्षों से मुकदमे लंबित

जज की कमी का सीधा असर आम जन पर पड़ता है, जिससे मुकदमे व अपीलें वर्षों घिसटती रहती हैं। सबसे ज्यादा बुरा हाल पटना का है। यहां 53 में से 26 पद खाली हैं। दिल्ली में 60 में से 25 पद, कोलकाता में 72 में से 33 पद खाली, इलाहाबाद में 160 में 66 पद व उत्तराखंड हाईकोर्ट में 11 में 4 पद खाली हैं। पटना और इलाहाबाद में आपराधिक अपीलें सुनवाई पर 10-10 सालों में आ रही हैं।

● श्याम सुमन

नई दिल्ली। उच्च न्यायपालिका में जज की नियुक्ति के लिए नए एमओपी (नियुक्ति का प्रक्रिया ज्ञापन) बनने की संभावनाएं क्षीण हो गई हैं।

मौजूदा मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने सोमवार को फिर दोहराया है कि जज की नियुक्ति की मौजूदा प्रक्रिया बेहद लोकतांत्रिक है, इसमें बदलाव की जरूरत नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश ने एक कार्यक्रम में कहा था कि यह कहना गलत है कि जज ही जजों को नियुक्त करते हैं। भारत में जज की नियुक्ति की प्रक्रिया जटिल है। यह परामर्श की लंबी प्रक्रिया से गुजरती है। उन्हें नहीं लगता कि कोई प्रक्रिया इससे ज्यादा लोकतांत्रिक हो सकती है। मालूम हो कि एमओपी में जज की नियुक्ति के मानदंड, योग्यताएं एवं उनके चयन की प्रक्रिया होती है।

हाईकोर्ट में जज के 387 पद खाली: फिलहाल 1998 के पुराने एमओपी पर नियुक्तियां हो रही हैं, जिसमें अपनाई जाने वाली प्रक्रिया काफी धीमी है। यही वजह है कि देश के 25 हाईकोर्ट में इस समय 387 जज की रिक्तियां हैं। इनमें जज की कुल अधिकृत संख्या 1104 है। ये रिक्तियां पिछले 10 वर्षों से बनी हुई हैं। सरकार और सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम के पास हाईकोर्ट के जज के लिए 168 प्रस्ताव विभिन्न स्तरों पर लंबित हैं। वहीं, शेष 219 रिक्तियों पर सरकार को कोलेजियम की ओर से प्रस्ताव नहीं मिले हैं। एमओपी कहता है कि नियुक्ति सृजित होने से छह माह पूर्व ही उसे भरने की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।

तेज नियुक्तियों के लिए नए एमओपी की कवायद शुरू हुई थी: नियुक्तियों में तेजी लाने तथा प्रक्रिया को स्ट्रीमलाइन करने के लिए ही सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2015 में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून, 2014 को निरस्त किया था।

सचिवालय और शिकायत तंत्र पर टकराव : सरकार चाहती है कि नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र सचिवालय बनाया जाए, जिसमें उम्मीदवार जजों का रिकॉर्ड रखा जाए। देशभर के हाईकोर्ट से उम्मीदवारों के नाम सचिवालय भेजे जाएं और वहां से उन्हें चुना जाए। कोलेजियम इसके विरुद्ध है। उसका कहना है कि सचिवालय की आवश्यकता नहीं है।

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