Mirchpur Murder Case

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71 साल बाद भी दलितों पर दबंगों का अत्याचार नहीं रुका: सुप्रीम कोर्ट

मिर्चपुर दलित हत्याकांड


एजेंसी | नई दिल्ली
दिल्ली हाईकोर्ट ने 2010 के मिर्चपुर हत्याकांड में ट्रायल कोर्ट का 18 आरोपियों को बरी करने का फैसला शुक्रवार को पलट दिया। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि आजादी के 71 साल बाद भी दलितों के खिलाफ दबंगों के अत्याचार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। जाट समुदाय के लोगों ने वाल्मीकि समुदाय के घरों को जानबूझकर निशाना बनाया। जस्टिस एस मुरलीधर और आईएस मेहता की बेंच ने एससी-एसटी एक्ट के तहत मामले के 97 आरोपियों में 33 को दोषी माना और 12 को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
हाईकोर्ट ने 18 आरोपियों को बरी करने का ट्रायल कोर्ट का फैसला पलटा, 33 आरोपी दोषी करार, 12 को उम्रकैद
यह है मामला
अप्रैल 2010 में हरियाणा के हिसार जिले के मिर्चपुर गांव में जाट समुदाय के 100 से अधिक लोगों ने 70 साल के दलित बुजुर्ग और उसकी 18 साल की बेटी को जिंदा जला दिया था। घटना से डरकर 150 दलित परिवारों को गांव छोड़ना पड़ा था। इन लोगों ने दिल्ली के एक मंदिर में शरण ली थी।

मिर्चपुर में दोबारा बन चुका भाईचारा, जाट समाज की महिलाओं का दर्द; सभी लोग जेल में, परिवार को कब तक कमाकर खिलाएं

ग्राउंड रिपोर्ट :मिर्चपुर कांड में 8 साल बाद फैसला, 20 लोगों को उम्रकैद, दलित परिवारों के मन में डर तो जाट परिवारों में फैसले से नाराजगी, गांव के लोग याद नहीं करना चाहते विवाद

भास्कर न्यूज | जींद

2010 में हुए मिर्चपुर कांड में दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद पूरे गांव में शांति है। गांव के लोग विवाद को दोबारा याद भी नहीं करना चाहते। गांव के अधिकतर लोगों को शुक्रवार को आए फैसले के बारे में पता भी नहीं था। सादी वर्दी में पुलिस कर्मी गांव पहुंच गए थे और खुफिया विभाग भी पल-पल की रिपोर्ट प्रशासन को देने में लगा था। गांव के नहर पाना की वाल्मीकि बस्ती व आसपास जिस जगह से आगजनी की शुरुआत हुई, वहां सरकार ने नए मकान बनाए, लेकिन एक परिवार को छोड़कर बाकी 17 मकानों में कोई नहीं है, लेकिन बाकी दलित परिवार आज भी रह रहे हैं। गांव में लगभग 150 से अधिक दलित परिवार हैं। उनमें डर था कि कहीं फैसले के कारण कोई दोबारा अनहोनी न हो जाए, लेकिन मानते हैं कि धीरे-धीरे भाईचारा गांव में बन रहा है।
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद मिर्चपुर गांव के नहर पाना (जिस जगह विवाद हुआ था) में शांति दिखी। लोग आम दिनों की तरह अपने कामों में लगे थे। नहर पाना की गली में ही जाट व चंद कदम की कुछ दूरी पर स्थित वाल्मीकि बस्ती में दलित परिवारों के घर हैं। सजा सुनाने के बाद जाट परिवारों में फैसले के प्रति नाराजगी है। उन्हें फैसला अपने पक्ष में आने की उम्मीद थी। उन परिवार के सदस्यों की आंखों से आंसू नहीं रुक रहे। जाट परिवारों की महिलाओं ने सरकार से इंसाफ मांगा। लोग भी मानते हैं कि कांड दर्द देने वाला रहा। बेकसूरों को फंसाया गया। 8 साल हो गए हैं और उनके परिवार के सदस्यों को छोड़ा जाता, ताकि परिवार का गुजर बसर हो सके। गांव के सरपंच सत्यवान ढांडा ने कहा कि पुरानी चीजों को कुरेदने का कोई मतलब नहीं है।
जानिए… विवाद में जिन परिवारों के लोग जेल गए, वे फैसले को सही नहीं मानते
जींद | मिर्चपुर गांव की वाल्मीकि बस्ती में वह मकान जो जल गए थे और बाद में सरकार द्वारा बनवाए गए, लेकिन आज यहां कोई नहीं रहता।
9 साल से बेटा जेल में, अब उम्मीद बंधी थी, वह भी टूटी : बीरमा
जाट परिवार से संबंध रखने वाली महिला बीरमा ने कहा कि 9 साल से बेटा जेल में है। आज फैसले से उम्मीद थी कि बेटा छूटकर घर आ जाएगा, लेकिन फैसले ने सारी उम्मीदें तोड़ डाली। जब कांड हुआ तो बेटे को जेल में डाल दिया गया। उसके बाद बहू अपने पीहर चली गई। अब पांच साल बाद आई है। एक पोती है। रोते हुए महिला ने कहा कि हम कब तक काम करके अपने परिवार का पेट पालेंगी। अब बहुत हो गया। हमारे बेटे को घर भेज दिया जाए। हम कमाकर खा लेंगे।
जेठ, बेटे, पोते सभी जेल गए अब मरना बाकी रहा : सुमित्रा
महिला सुमित्रा ने कहा कि देवर, जेठ, बेटे, पोते सभी जेल में हैं। बेटे, पोते जब जेल गए, वे छोटे-छोटे थे। सारे घर के आदमी जेल चले गए। हम महिलाएं कब तक कमाकर घर चलाएंगी। अब बेटियां शादी लायक हो गई हैं। सरकार लोगों की मदद करती है, लेकिन हमारी सरकार कोई मदद नहीं कर रही। अब तो केवल हमारा मरना बाकी है और हम सरकार के सिर होकर मरेंगे।
जींद | मिर्चपुर गांव के नहर पाना स्थित वाल्मीकि बस्ती में (जहां घटना हुई थी) पानी भरती महिलाएं। सभी लोग दिनचर्या के काम करते दिखे।
दूध बेच चलाया घर : सरबती
बुजुर्ग सरबती ने बताया कि जिस समय विवाद हुआ, उनका एक सदस्य बाहर गया था, जबकि दूसरे का पेपर था। वह घर में तैयारी कर रहा था। घर से कोई बाहर नहीं निकला, लेकिन सबके नाम लिखवा दिए गए। बाद में एक-एक करके सभी को पुलिस ले गई। उसने भैंस का दूध बेच-बेचकर घर चलाया। दो रोटी दिन-रात खाकर गुजारा करती और इसी आस में रहती कि आज उसके बच्चे बाहर आ जाएंगे। 17 माह बाद बाहर आए, लेकिन फिर सजा सुना दी गई, जो गलत है।

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