अदालत ने दी कस्टडी पैरोल
अदालत में सुनवाई के दौरान लोक अभियोजक ने पैरोल का विरोध करते हुए तर्क दिया कि इस्लाम धर्म बच्चा गोद लेने की कानूनी रूप से इजाजत नहीं देता है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय पर धर्म से संबंधित पर्सनल लॉ लागू होते हैं। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बेशक बच्चा गोद लेने की अनुमति नहीं देता, लेकिन जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के अंतर्गत हर व्यक्ति को बच्चा गोद लेने का अधिकार है। दलीलें सुनने के बाद अदालत ने आरोपी को बच्चा गोद लेने की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए कस्टडी पैरोल दे दी।
नई दिल्ली, प्रमुख संवाददाता। एक आपराधिक मुकदमे में जेल में बंद आरोपी ने बच्चा गोद लेने के लिए पैरोल मांगी तो अभियोजन पक्ष ने विरोध किया। अभियोजन ने कहा कि इस्लाम में बच्चा गोद लेने का प्रावधान नहीं है। इस पर अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति को इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि वह इस्लाम धर्म से है।
पटियाला हाउस स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा की अदालत ने जेल अधीक्षक को आदेश दिया है कि वह आरोपी को हिरासत में संबंधित कार्यालय लेकर जाएं, जहां बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया के तहत आरोपी को हस्ताक्षर करना है। अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को बच्चा गोद लेने से इसलिए वंचित नहीं किया जा सकता, क्योंकि वह मुस्लिम समुदाय से है। बच्चा गोद लेने का अधिकार सभी को समान रूप से है।
दरअसल, जेल में बंद मुस्लिम व्यक्ति ने अपनी वकील कौसर खान के जरिए दाखिल याचिका में कहा था कि उसे बच्चा गोद लेने के लिए कुछ जरूरी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करने हैं और संबंधित अधिकारी से मिलना है। उसे हरियाणा के नूंह जाना पड़ेगा, जिसके लिए उसने पेरौल की मांग की थी।