तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा एवं न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि कंडक्टर ने लंबे समय तक अपने हक की लड़ाई लड़ी। अब वह जीवित नहीं है, परंतु दस्तावेज साबित करते हैं कि शिकायतकर्ता कंडक्टर अपनी जगह सही था, उसे गलत तरीके से महज 15 दिन का अवकाश लेने के पर नौकरी से निष्कासित किया गया था। पीठ ने साथ ही वर्ष 2003 में श्रम अदालत द्वारा शिकायतकर्ता के पक्ष में सुनाए गए निर्णय को न्यायसंगत करार दिया। पीठ ने इस याचिका का निपटारा करते हुए कहा कि दिल्ली परिवहन विभाग (डीटीसी) कंडक्टर की विधवा व बच्चों को अब तक की बकाया रकम का भुगतान करे।
1992 में नौकरी से निकाल दिया था कंडक्टर को बगैर बताए 15 दिन का अवकाश लेने के आरोप में नौकरी से निकाल दिया गया था। विभाग का आरोप था कि वह 31 मार्च 1991 से 14 अप्रैल 1991 तक बिना किसी सूचना के अवकाश पर रहा।
वर्ष 2007 में हो गई थी मौत कंडक्टर की वर्ष 2007 में मौत हो गई। इसके बाद मृतक की विधवा व बच्चों ने इस कानूनी लड़ाई का आगे बढ़ाया। 16 साल बाद मृतक के परिवार के पक्ष में निर्णय आया है।